Wednesday, August 24, 2011

" कैद "

नौटंकी के खेल मे इस दुनिया के जेल मे
कई कई कैदी अदभूत पाये
भेष भूषा रंग चुराये
सबमे इक ही मेल है पाये
कैद मे है फिर भी गुर्राये
हमसे ही जमाना है ,इस जग को चालना है
थोडा सिधा थोडा बाये ,क्या फर्क है मेरे भाई
हर कोई कैदी ये कैसा सच
"आई लव यु " तो बोला बस
कैद थोडा ही ये तो बंधन है
युगो युगो से ये क्रंदन है
ठोकर लागी तो पता ये पाई
कैदी है हम उसके भाई
त्याग दिया जिसपे घर बार
दुनिया जिसको केह्ती "प्यार"
वो भी तो इक जेल है
दो दिलो का खेल है
कोई नचाये कोई नाचे
अंत मे साधू बन के बाचे.....

कुछ कैदी ऐसे है भाई
मिनट लग नही गोता  खाई
अभी इधर अभी उधर
पता नही फिर किधर किधर
समझ न पाये किसके गुलाम है
आस पास सब् परेशान है
टिकता ही नही ये इक ओर
गजब् का है ये भी चोर
शर्म तो मनो पी गया था
अपनी सजा वो जी गया था
अन्तः कहा जा के बिताये
सोच मे है मेरे भाई .......
कैद मे शादी य शादी कि कैद
समझ न पाया कोइ इसका भेद
कैद से मुक्ति य कैद का डर
सास बहु और नया घर
नई पकड नया संदुक
विधाता तेरी महिमा खुब्
कौन नाचे कौन नचाये
किसको कौन कैदी बनाये
उलझन मे बिता जमाना
समझ सको तो मुझ् को बताना ....
हर कैदी को कुछ नशा था
दौलत , शोहरत , बद् जुबान सा
माना सबने यही ठिकाना
समझ ना पाया ये जमाना
नौटंकी का खेल है , दो दिनो का मेल है
शिफ़र् से चल फिर शिफ़र् तक
फिर कहा किसको खबर तब्
खबर जिसने है तेरी पायी
उसकी बन्दगी कर लो भाई
शुरु उसी से अन्तः उसी का
मया तृष्णा जाल उसी का
फ़स् गया तो कैद मेरे भाई
उबर गया तो मुक्ति पाई ......